भाग्य या कर्म

✍एक चाट वाला था। जब भी चाट खाने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती।

एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।

तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।

मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?

और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।

कहने लगा,आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा?

उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाभियाँ होती हैं।

एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।

आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।

जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नहीं खुल सकता।

आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान।

अाप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये।पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये ।

This is a beautiful interpretation of Karma and Bhagya.

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